क्या है 'पुरानी पेंशन योजना' (Old Pension Scheme)

1. इस स्कीम में रिटायरमेंट के समय कर्मचारी के वेतन की आधी राशि पेंशन के रूप में दी जाती है।
2. पुरानी स्कीम में जनरल प्रोविडेंट फंड यानी GPF का प्रावधान है।
3. इस स्कीम में 20 लाख रुपये तक ग्रेच्युटी की रकम मिलती है।
4. पुरानी पेंशन स्कीम में भुगतान सरकार की ट्रेजरी के माध्यम से होता है।
5. रिटायर्ड कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिजनों को पेंशन की राशि मिलती है।
6. पुरानी पेंशन स्कीम में पेंशन के लिए कर्मचारी के वेतन से कोई पैसा नहीं कटता है।
7. इसमें छह महीने बाद मिलने वाले DA का प्रावधान है।

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) ने कहा कि 'पुरानी पेंशन योजना' (Old Pension Scheme) को पुनः लागू करने से राज्य सरकारों के लिये एक बड़े वित्तीय जोखिम का कारण बन सकता है।

प्रमुख बिंदु

गौरतलब है कि देश के कई राज्यों में चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों ने सत्ता में आने के बाद 'पुरानी पेंशन योजना' को बहाल करने की घोषणा की है। साथ ही राजस्थान एवं पंजाब जैसे राज्यों में सरकारों ने 'पुरानी पेंशन योजना' को बहाल कर दिया है। 

इससे पूर्व भारतीय रिजर्व बैंक और 15वें वित्त आयोग ने भारतीय राज्यों के लिये राजकोषीय जोखिमों के संभावित स्रोतों को रेखांकित किया था, इसमें कर राजस्व में गिरावट, कुछ राज्यों में पुरानी पेंशन योजनाओं को फिर से शुरू करना, घाटे में चल रही बिजली वितरण कंपनियों का बढ़ता बकाया और आवधिक कृषि ऋण माफी एवं सब्सिडी का वितरण आदि शामिल है।

क्या है 'राष्ट्रीय पेंशन योजना(National Pension Scheme-NPS)

1. NPS एक सहभागी योजना है। नई पेंशन स्कीम (NPS) में कर्मचारी की बेसिक सैलरी+ डीए का 10 फीसद हिस्सा कटता हैसाथ ही सरकार द्वारा भी इस फंड में समान धनराशि का योगदान किया जाता है। वर्ष 2019 के नवीनतम संशोधन के बाद योगदान का सरकारी हिस्सा 10% से बढ़ाकर 14% कर दिया गया है 
2. एनपीएस शेयर बाजार पर आधारित है। इसलिए यह पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। यहां रिटायरमेंट के बाद निश्चित पेंशन की गारंटी नहीं होती।
3. एनपीएस शेयर बाजार पर आधारित है, इसलिए यहां टैक्स का भी प्रावधान है।
4. इसमें छह महीने बाद मिलने वाले DA का प्रावधान नहीं है।

■ वर्ष 2003-04 में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने पुरानी पेंशन योजना को बंद करने और NPS की शुरुआत करने का निर्णय लिया। यह योजना 1 अप्रैल, 2005 से केंद्र सरकार की सेवा (सशस्त्र बलों को छोड़कर) में शामिल होने वाले सभी नए कर्मचारियों पर लागू है। NPS की शुरुआत के लिये केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 में संशोधन किया गया था। 27 राज्यों ने स्वीकृति देकर उसे अपने यहां लागू किया था। प0 बंगाल व तमिलनाडु ने मंजूरी नहीं दी थी। 

एक कर्मचारी के पूरे सेवाकाल के दौरान एकत्र होने वाली धनराशि को पेंशन फंड मैनेजर्स के माध्यम से निर्धारित निवेश योजनाओं में निवेश किया जाता है। इसके तहत शामिल कर्मचारी सेवानिवृत्ति पर 60% कोष निकाल सकते हैं, जो कर-मुक्त होती है और शेष 40% वार्षिकी में निवेश किया जाता है, जिस पर कर (Tax) लगता है। इसके दो घटक हो सकते हैं- टीयर I और टीयर-II

टीयर-II एक स्वैच्छिक बचत खाता है जो निकासी के मामले में अधिक लचीलापन प्रदान करता है और इससे टीयर-खाते के विपरीत किसी भी समय निकासी की जा सकती है। यहाँ तक कि निजी क्षेत्र से जुड़े लोग भी NPS का विकल्प चुन सकते हैं।

वित्त मंत्रालय ने 2019 में कहा कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों के पास अपने टीयर-I खाते में पेंशन फंड (पीएफ) और निवेश पैटर्न चुनने का विकल्प है।

इसके तहत पूर्व निर्धारित पेंशन फंड मैनेजर्स में एलआईसी पेंशन फंड लिमिटेड, एसबीआई पेंशन फंड्स प्राइवेट लिमिटेड और यूटीआई रिटायरमेंट सॉल्यूशंस लिमिटेड शामिल हैं।

वर्तमान में सरकार द्वारा भुगतान की जाने वाली न्यूनतम पेंशन ₹9,000/ प्रति माह है, और अधिकतम ₹62,500 है (केंद्र सरकार में उच्चतम वेतन का 50 प्रतिशत, जो कि ₹1,25,000 प्रति माह है)।

विनियमन एवं दायरा

■ पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (PFRDA) NPS के लिये नियामकीय एजेंसी के रूप में काम करता है। PFRDA की स्थापना वर्ष 2013 में पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम के माध्यम से पेंशन फंड की योजनाओं के तहत ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिये की गई थी।

अक्टूबर 2022 तक केंद्र सरकार के 23,32,774 कर्मचारी एवं राज्यों के 58,99,162 कर्मचारी NPS में शामिल थे। इसके अतिरिक्त NPS में कॉर्पोरेट क्षेत्र से जुड़े 15,92,134 कर्मचारी तथा असंगठित क्षेत्र के 25,45,771 कर्मचारी और एनपीएस स्वायोजना के तहत 41,77,978 कर्मचारी शामिल थे। 31 अक्टूबर 2022 तक इन सभी सब्सक्राइवर्स के प्रबंधन के तहत कुल संपत्ति ₹ 7,94,870 करोड़ थी।

पुरानी पेंशन योजना से जुड़ी चुनौतियाँ

OPS की मुख्य समस्या यह थी कि पेंशन की देनदारी अनफंडेड रही-यानि इसके लिये विशेष रूप से कोई अलग कॉर्पस नहीं था, जो लगातार बढ़ता रहे और भुगतान में आसानी हो सके।

पिछले तीन दशकों में, केंद्र और राज्यों के लिये पेंशन देनदारियाँ कई गुना बढ़ गई है। 1990-91 में, केंद्र का पेंशन बिल ₹3,272 करोड़ था, और सभी राज्यों के लिये कुल व्यय ₹ 3,131 करोड़ था। 2020-21 तक, केंद्र का बिल 58 गुना बढ़कर ₹1,90,886 करोड़ हो गया था; राज्यों के लिये, यह 125 गुना बढ़कर ₹3,86,001 करोड़ हो गया था।

■ राजस्थान देश का पहला ऐसा राज्य है, जिसने चालू वित्तीय वर्ष के बजट में पुरानी पेंशन योजना को वापस लागू करने की घोषणा की। इसे अगर राजस्थान के आर्थिक आंकड़ों से समझना हो, तो वर्तमान समय में राजस्थान में कुल आय  का 56 प्रतिशत व्यय वेतन व पेंशन पर हो रहा है और इसका फायदा जनसंख्या के मात्र छह प्रतिशत हिस्से को हो रहा है। बाकी बची 44 प्रतिशत आय जनसंख्या के 94 प्रतिशत हिस्से में विभिन्न योजनाओं के माध्यम से व्यय हो रही है। हिमाचल प्रदेश में चुनाव के दौरान इस मुद्दे पर चर्चा आम रही। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश में अभी 64,904 करोड़ रुपये का सार्वजनिक ऋण बकाया है, वहीं सरकारी पेंशन का खर्च 35,535 करोड़ रुपए है, जो राजस्व खर्चों का 18.26 प्रतिशत है।  

■ कुछ राज्यों में पेंशन भुगतान में उनके कर राजस्व का एक चौथाई हिस्सा खर्च हो जाता है। जैसे हिमाचल के लिये यह लगभग 80% है; पंजाब के लिये यह लगभग 35% और छत्तीसगढ़ के लिये 24%  है।

राजनीति से प्रेरितः वर्तमान में राजनीतिक दलों द्वारा OPS को पुनः बहाल करने की घोषणा राजनीति से प्रेरित अधिक प्रतीत होती है, क्योंकि वर्ष 2004 में सरकारी नौकरी में शामिल होने वाले अधिकांश कर्मचारी वर्ष 2034 में सेवानिवृत होंगे (30 वर्ष की सेवा के आधार पर) ऐसे से वर्तमान में चुनावों में OPS की घोषणा करने वाले दलों को तात्कालिक रूप से इसकी चुनौतियों की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है हालांकि यह भविष्य की सरकारों के लिये एक बड़ी चुनौती बन सकता है।

पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का कारण

वर्तमान में राज्य सरकारों को OPS के तहत पंजीकृत कर्मचारियों की पेंशन के अतिरिक्त NPS के तहत पंजीकृत कर्मचारियों की पेंशन हेतु उनके पेंशन फंड में भी योगदान करना पड़ता है, ऐसे में OPS को लागू करने के बाद सरकार NPS के खर्च से बच जाएगी।

अधिकांश कर्मचारियों का आरोप है कि नई पेंशन व्यवस्था में पेंशन की धनराशि कम होने के साथ इसके बाजार आधारित होने के कारण इसमें अनिश्चितता भी बनी रहती है, साथ ही इसमें मंहगाई राहत का प्रावधान नहीं है। 

केंद्र सरकार का मत

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने मार्च 2022 को संसद को सूचित किया कि भारत सरकार के विचाराधीन केंद्र सरकार के सिविल कर्मचारियों के लिये पुरानी पेंशन योजना को फिर से शुरू करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।

केंद्रीय कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री के अनुसार, NPS भले ही बाजार से जुड़ा रिटर्न पर आधारित है परंतु पेंशन एक दीर्घकालिक उत्पाद होने के कारण अल्पावधि अस्थिरता के बावजूद निवेश को अच्छे रिटर्न के साथ बढ़ने में सक्षम बनाता है।

इसके अलावा, PFRDA द्वारा निर्धारित विवेकपूर्ण दिशानिर्देश, एक कठोर प्रक्रिया के माध्यम से चुने गए पेशेवर फंड मैनेजरों के कौशल और विभिन्न परिसंपत्ति वर्गों (इक्विटी, कॉर्पोरेट बॉन्ड, सरकारी प्रतिभूतियों) में संपत्ति आवंटन का विकल्प ग्राहक के संचय को बढ़ने में सक्षम बनाता है।

आगे की राह

 यदि राज्य सरकार के कर्मचारियों के वेतन और भत्ते को पेंशन के साथ जोड़ दिया जाए तो राज्यों के पास अपनी कर प्राप्तियों से मुश्किल से ही कुछ बचता है। सरकार को CAG की वर्ष 2018 की रिपोर्ट का अनुसरण करते हुए एक निश्चित रिटर्न प्रदान करने के लिये आवश्यक प्रावधान करने चाहिये।