निदेश याचिका संख्या 1947 /2016 यतेन्द्र प्रताप बनाम उ0प्र0 राज्य व अन्य में मा0 अधिकरण द्वारा पारित आदेश दिनांक 10-02-2021 

संक्षेप में याचिका के तथ्य इस प्रकार है कि याची की नियुक्ति आबकारी विभाग में वर्ष 2011 में की गई थी। जनपद उन्नाव में तैनाती के दौरान दिनांक 11.01.2015 से 16.01.2015 के मध्य थाना हसनगंज के अन्तर्गत 12 व्यक्तियों की अवैध विषाक्त मंदिरा के सेवन से हुई मृत्यु गम्भीर प्रकरण में याची को दोषी पाते हुए आदेश दिनांक 12.01.2015 द्वारा निलंबित किया गया एवं विभागीय कार्यवाही प्रारम्भ की गई जिसमें पत्र दिनांक 24.02.2015 द्वारा याची को आरोप पत्र निर्गत किया गया। याची द्वारा आरोप पत्र का उत्तर दिनांक 04.03.2015 को दिया गया जिसमें आरोपों से इनकार किया गया। 
याची का कथन था कि जहरीली शराब पीने से हुई मृत्यु की घटना ग्राम-दतली, थाना मलिहाबाद, जिला- लखनऊ की थी जहां पर अवैध रूप से बिक रही विषाक्त मंदिरा के सेवन से जनपद-उन्नाव के थाना-हसनगंज क्षेत्र के अन्तर्गत 12 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। 
याची का कहना था कि दुर्घटना में हताहत व्यक्ति ग्राम-दतली. थाना-मलिहाबाद, जनपद-लखनऊ में आयोजित क्रिकेट टूर्नामेन्ट देखने गए थे वहां पर जगनू पुत्र बदलू पासी द्वारा बेची जा रही अवैध विषाक्त मंदिरा का सेवन किया, ग्राम-तालासराय थाना- हसनगंज, जनपद-उन्नाव में कोई भी व्यक्ति अवैध शराब बनाने एवं बेचने का कार्य नहीं करता था। इस संबंध में ग्राम प्रधान द्वारा थाना हसनगंज में दी गयी तहरीर व मृतक अथवा बीमार व्यक्तियों के परिजनों द्वारा भी यही बयान दिया गया है कि दुर्घटना में हताहत सभी व्यक्तियों ने ग्राम-दतली, थाना- मलिहाबाद, जनपद-लखनऊ में अवैध विषाक्त मदिरा का सेवन किया था। 
याची का कथन था कि आरोपपत्र का उत्तर देने के उपरान्त जांच अधिकारी द्वारा उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमावली, 1999 के नियम-7 का उल्लंघन करते हुए जांच की गयी और जांच आख्या दिनांक-20.05.2015 को प्रस्तुत कर दी। 
उसके उपरान्त याची को दिनांक 22.05.2015 को जांच आख्या की प्रति संलग्न करते हुए कारण बताओ नोटिस निर्गत की गयी जिसका विस्तृत उत्तर याची द्वारा दिनांक 02.06.2015 को प्रस्तुत किया गया जिस पर विचार किये बिना ही याची को आदेश दिनांक- 08.06.2015 द्वारा परिनिन्दा के दण्ड से दंडित कर दिया गया। परिनिन्दा प्रविष्टि देने के उपरान्त याची को निलंबन अवधि का वेतन देने या न देने के संबंध में एक कारण बताओ नोटिस दिनांक 19.06.2015 निर्गत की गयी जिसका उत्तर याची द्वारा दिनांक 22.07.2015 को प्रस्तुत किया गया और उसके उत्तर पर बिना विचार किये ही आदेश दिनांक-28.10.2015 द्वारा निलंबन अवधि 12.01. 2015 से 08.06.2015 तक का वेतन (जीवन निर्वाह भत्ते को छोड़कर) शासन के पक्ष में जब्त करने का आदेश पारित किया गया। 
याची का यह भी कथन था कि जांच अधिकारी द्वारा याची को अपना पक्ष प्रस्तुत करने हेतु कोई समय, स्थान व तिथि निर्धारित करते हुए कोई अवसर नहीं दिया गया और न ही कोई मौखिक जांच की गयी। पारित दण्डादेश उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमावली, 1999 के नियम-10 (2) का उल्लंघन है क्योंकि दण्डादेश में उस कारण का उल्लेख नहीं किया गया है जिसके आधार पर दण्डादेश पारित किया गया है। याची द्वारा दण्डादेश के विरूद्ध अपील प्रस्तुत की गयी परन्तु अपील में दर्शाये गये तथ्यों पर बिना विचार किये ही आदेश दिनांक- 04.05.2016 द्वारा उनकी अपील निरस्त कर दी गयी तदुपरान्त याची द्वारा एक प्रत्यावेदन पुनः दिया गया जिसे आदेश दिनांक 22.02.2017 द्वारा निरस्त कर दिया गया। अतः यह याचिका संस्थित की गई।
उक्त निदेश याचिका में मा0 अधिकरण द्वारा पारित आदेश दिनांक 10-02-2021 का प्रभावी अंश निम्नवत है :-
                                                          
निर्देश याचिका स्वीकार की जाती है। प्रतिपक्षी संख्या-3 द्वारा पारित आदेश दिनांक- 08.06.2015 (संलग्नक -1), आदेश दिनांक-28.10.2015 (संलग्नक-2) तथा अपीलीय आदेश दिनांक-04.05.2016 एवं प्रतिपक्षी संख्या- 2 द्वारा पारित आदेश दिनांक 22.02.2017 (संलग्नक -13) निरस्त किये जाते हैं ।

रिट याचिका संख्या-593/2022 (रिट-ए) उ0 प्र0 राज्य व अन्य बनाम यतेन्द्र प्रताप में मा0 उच्च न्यायालय इलाहाबाद, लखनउ खण्डपीठ द्वारा पारित आदेश दिनांक 9.2.2022 

        
निदेश याचिका संख्या 1947 /2016 में मा0 लोक सेवा अधिकरण द्वारा पारित आदेश दिनांक 10-02-2021 के विरुद्ध उ0प्र0आबकारी विभाग द्वारा मा0 उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ खण्डपीठ में रिट याचिका संख्या 593 /2022 (रिट-ए) उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य बनाम यतेन्द्र प्रताप योजित की गयी थी। उक्त रिट  याचिका में सुनवाई के बाद मा0 उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक 9.2.2022 का प्रभावी अंश निम्नवत है :-
It is gathered from the record that a clear justification was pleaded by the delinquent employee about the incident having taken place beyond his territorial limits yet a minor penalty was imposed to justify the action of proceeding against. The reasons spelt out by the opposite party in the explanation filed against the show cause notice ought not to have been left unconsidered. Such a lapse on the part of the disciplinary authority has rightly been held to vitiate the impugned action. The reasons recorded by the tribunal are convincing to uphold the view taken. 
We are not satisfied for interference under Article 226 of the Constitution of India, the writ petition is accordingly dismissed.