भ्रष्टाचार में सरकारी कर्मी को दोषी ठहराने के लिए प्रत्यक्ष सुबूत अनिवार्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा-परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर भी सुना सकते हैं सजा

सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने गुरुवार (15 दिसंबर,2022) को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत किसी लोकसेवक को दोषी ठहराने के लिए रिश्वत मांगने के सीधे सबूत की आवश्यकता नहीं है और ऐसी मांग को परिस्थितिजन्य सबूतों से साबित किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि अदालत एक भ्रष्ट अधिकारी को रिश्वत मांगने और स्वीकार करने के लिए दोषी ठहरा सकती है, यहां तक ​​कि उस मामले में भी जिसमें शिकायतकर्ता सहित गवाह पक्षद्रोही हो जाते हैं और अपने पहले के बयानों से पीछे हट जाते हैं कि रिश्वत की मांग की गई थी। खंडपीठ ने कहा कि अपराध साबित करने के लिए अदालत अन्य गवाहों के बयान पर भरोसा कर सकती है।

न्यायमूर्ति अब्दुल नज़ीर, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना, न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना की 5 जजों की खंडपीठ ने इस मामले में 23 नवंबर को आदेश सुरक्षित रख लिया था। फरवरी 2019 में, सर्वोच्च न्यायालय की दो जजों की बेंच ने सत्यनारायण मूर्ति बनाम आंध्र प्रदेश राज्य में 2015 के सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले में असंगतता पाते हुए इस मामले को भारत के चीफ जस्टिस (CJI) के पास भेज दिया था, जिसमें कहा गया था कि आरोपी के खिलाफ प्राथमिक सबूतों की कमी है, इसलिए दोषी, लोक सेवक को बरी कर दिया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट को भ्रष्ट लोगों के खिलाफ नरमी नहीं बरतनी चाहिए। अदालत ने आगे कहा कि भ्रष्ट अफसरों पर केस दर्ज किया जाना चाहिए और उन्हें दोषी ठहराया जाना चाहिए, क्योंकि भ्रष्टाचार ने शासन को प्रभावित करने वाले एक बड़े हिस्से को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। अदालत ने कहा कि ईमानदार अधिकारियों पर इसका असर पड़ता है।