संख्या-08/2022/725
/सैंतालिस/ का-1-2022/13(2)/2022
प्रेषक,
डॉ देवेश चतुर्वेदी,
अपर मुख्य सचिव,
उत्तर प्रदेश शासन।
सेवा
में,
1.
समस्त अपर मुख्य सचिव / प्रमुख सचिव / सचिव, उत्तर
प्रदेश शासन ।
2.
समस्त विभागाध्यक्ष / प्रमुख कार्यालयाध्यक्ष, उत्तर प्रदेश ।
3.
समस्त मण्डलायुक्त / जिलाधिकारी, उत्तर प्रदेश
।
कार्मिक
अनुभाग-1 लखनऊ:
दिनांक 19 जुलाई, 2022
विषय:-उत्तर
प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमावली,
1999(यथा संशोधित) के आलोक में विभागीय कार्यवाहियों का नियमानुसार
निस्तारण किए जाने के संबंध में।
महोदय,
सरकारी सेवकों के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही किए जाने तथा दण्ड देने की प्रक्रिया,
उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमावली, 1999
(यथा संशोधित) के माध्यम से निर्धारित की गयी है। इस नियमावली की
व्यवस्था के अनुपालन हेतु समय-समय पर विस्तृत दिशा निर्देश भी निर्गत किए गए है,
किन्तु इसके बावजूद भी कतिपय अवसरों पर यह पाया गया है कि संबंधित
जाँच अधिकारियों एवं नियुक्ति / अनुशासनिक प्राधिकारियों द्वारा उक्त नियमावली में
वर्णित प्रक्रिया एवं रीति (Procedure and method) का सम्यक
अनुपालन न किए जाने के कारण विभागीय जाँच एवं तदोपरांत लिए गए निर्णय त्रुटिपूर्ण
होने के तथ्य शासन के संज्ञान में आये हैं।
2- उपर्युक्त के दृष्टिगत विभागीय कार्यवाहियों के संबंध में पूर्व निर्गत शासनादेशों आदि के क्रम में प्रक्रिया/व्यवस्था जिसका अनुपालन आवश्यक (Do’s) एवं निषेधात्मक निर्देश (Don'ts) संलग्न कर प्रेषित करते हुए मुझे आपसे निम्नवत् अनुरोध करने का निदेश हुआ है :-
(1) अनुशासनिक जॉच संस्थित करने की प्रक्रिया /जॉच अधिकारी एवं नियुक्ति / अनुशासनिक प्राधिकारी के स्तर पर उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमावली, 1999 (यथा संशोधित) एवं इस संबंध में समय-समय पर निर्गत शासनादेशों की व्यवस्थाओं का अनुपालन (In True Spirit) सुनिश्चित किया जाए।
2)
जाँच अधिकारी एवं अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा अनुशासनिक कार्यवाही के दौरान
संलग्न Do's
एवं Don'ts को अवश्य संज्ञान में लिया जाए।
(3)
जिन अधिकारियों को अनुशासनिक कार्यवाही से संबंधित विषयों पर प्रशिक्षण के लिए
नामित किया गया हो, उन्हे उक्त प्रशिक्षण हेतु
अनिवार्य रूप से अवमुक्त किया जाना सुनिश्चित किया जाए ।
कृपया उपरोक्त व्यवस्था का प्रत्येक स्तर पर अनुपालन
सुनिश्चित किया जाए।
संलग्नकः
यथोक्त।
भवदीय,
डॉ
देवेश चतुर्वेदी
अपर
मुख्य सचिव
उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन एवं
अपील) नियमावली, 1999 के अधीन सरकारी सेवकों
के विरुद्ध अनुशासनिक कार्यवाही करते समय ध्यान में रखे जाने हेतु मुख्य बातें:
जिसका
अनुपालन आवश्यक है (Do's) -
1-
जहां नियुक्ति प्राधिकारी का यह समाधान हो जाय कि संबंधित कार्मिक के विरूद्ध आरोप
प्रमाणित पाए जाने पर दीर्घ शास्ति/शास्तियां भी अधिरोपित की जा सकती है,
तो नियमावली के नियम-7 में विहित प्रक्रिया का पालन किया जाना
चाहिए।
2-
किसी भी सरकारी सेवक का निलंबन तभी किया जाना चाहिये जब सरकारी सेवक के विरुद्ध अभिकथन
( Allegations)
इतने गम्भीर हो कि उनके स्थापित हो जाने की दशा में दीर्घ दण्ड का
समुचित आधार हो सकता है।
3-
सामान्यतया अपचारी अधिकारी से दो स्तर ऊपर का जॉच अधिकारी होना चाहिए और जांच से
सम्बंधित स्थान पर अधिकारी को पदनाम से जाँच अधिकारी नियुक्त किया जाना चाहिए।
4-
आरोप पत्र यथाशीघ्र निर्गत किया जाय, जिसमें
समस्त आरोप स्पष्ट एवं सक्षेप में अभिलिखित हो। आरोपो के समर्थन में ऐसे साक्ष्य
दिए जाए जो वास्तविक रूप से आरोपो का समर्थन करते हो।
5-
अपचारी कार्मिक द्वारा यदि अभिलेखों के निरीक्षण की अपेक्षा की जाती हो तो उसे
निरीक्षण का अवसर अवश्य प्रदान किया जाय ।
6-
अपचारी कार्मिक से अपना लिखित स्पष्टीकरण 15 दिन से 01 माह के अन्दर प्रस्तुत करने
को कहा जाय।
7-
यदि जांच,
पूर्व नियुक्ति के स्थान से संबंधित है तो अपचारी सरकारी सेवक को उस
स्थान पर जाने की अनुमति दे दी जाय, जहां उसे अभिलेख आदि
देखने है।
8-
जांच अधिकारी अपचारी कार्मिक को साक्ष्य के अन्तर्गत दिये गये अभिलेखों की
स्वीकार्यता के संबंध में आपत्ति प्रकट करने का अवसर भी देगा।
9-
आरोपित सरकारी सेवक को अपना पक्ष प्रस्तुत करने का युक्तियुक्त अवसर दिया जाना
चाहिए। यदि आरोपित सरकारी सेवक आरोपो से इन्कार करता है,
वहाँ जाँच अधिकारी आरोप पत्र में प्रस्तावित साक्षियों (Witnesses)
को प्रतिपरीक्षण (Cross-Examination) हेतु
बुला सकता है। जाँच अधिकारी उनके मौखिक साक्ष्यों को आरोपित अधिकारी की उपस्थिति
में अभिलिखित करेगा। उपर्युक्त साक्ष्यों को अभिलिखित करने के पश्चात जॉच अधिकारी
उस मौखिक साक्ष्य को मागेंगा और उसे अभिलिखित करेगा जिसे आरोपित सरकारी सेवक ने
अपनी प्रतिरक्षा में अपने लिखित कथन में प्रस्तुत करना चाहा था ।
प्रतिबंध यह है कि जाँच अधिकारी ऐसे कारणों से जो लिखित
रूप से अभिलिखित किए जाएगें, किसी साक्षी को बुलाने
से कर सकेगा।
10-
जांच अधिकारी द्वारा जांच के दौरान गवाहों के बयान आरोपित सरकारी सेवक के समक्ष
तथा विधिवत शपथ दिलवाने के उपरान्त लिया जाना चाहिए।
11-
जॉच अधिकारी संपूर्ण जॉच की कार्यवाही में कृत कार्यवाहियों का आदेश पत्रक (Order
Sheet) तैयार करेगें जिस पर यथासमय आरोपित अधिकारी एवं अन्य
साक्षियों के हस्ताक्षर कराएगें। जाँच आख्या प्रस्तुत करते समय जाँच आख्या के साथ
उक्त आदेश पत्रक को संलग्नक के रूप में अनुशासनिक प्राधिकारी को प्रेषित करेगें।
12- यदि अनुशासनिक प्राधिकारी जांच अधिकारी की आख्या के निष्कर्षो से असहमत है तो असहमति के संबंध में अपने निष्कर्षों को सकारण अभिलिखित करेगें, तथा अपचारी कार्मिक से अपने अभिलिखित निष्कर्ष पर 02 सप्ताह के भीतर उत्तर की अपेक्षा करेगें।
13-
यदि नियुक्ति प्राधिकारी /अनुशासनिक प्राधिकारी श्री राज्यपाल हैं तो अपचारी
कार्मिक के वित्तीय उपाशय वाले सभी दण्डों के सम्बन्ध में लोक सेवा आयोग का
परामर्श प्राप्त किया जाना चाहिए तथा लोक सेवा आयोग को अपचारी कर्मचारी के समस्त
अभिलेख निदर्श प्रपत्र के माध्यम से भेजा जाना चाहिए।
14-
किसी विभागीय जांच की कार्यवाही के फलस्वरूप नियमावली में उल्लिखित एक से अधिक
दण्ड दिये जाने का निर्णय लिए जाने पर दण्डादेश पृथक-पृथक निर्गत नहीं किये
जायेगे। दण्डादेश सदैव सकारण एवं स्वमुखरित होने चाहिए।
15-
सेवा से हटाना अथवा सेवा से पदच्युत किये जाने के आदेश तात्कालिक प्रभाव से
प्रभावी होगे।
16-
विभागीय कार्यवाही एवं आपराधिक मामले की कार्यवाही पृथक-पृथक की जा सकती है।
17-
यदि विभागीय जांच की कार्यवाही के लम्बित रहते आरोपित सरकारी सेवक अपनी अधिवर्षता
आयु प्राप्त कर सेवानिवृत्त हो जाता है तो लम्बित जांच को सी0एस0आर0 के अनुच्छेद-
351ए के तहत पेंशन की कटौती के लिए जारी रखा जा सकता है। उक्त आशय का औपचारिक
निर्णय लेते हुए तदनुसार आदेश भी निर्गत कर दिए जाने चाहिए |
18-
यदि सेवानिवृत्ति के पश्चात् कोई तथ्य सामने आये तो सेवानिवृत्ति के पश्चात् भी
सी0एस0आर0 के अनुच्छेद-351ए के तहत कार्यवाही की जा सकती है,
बशर्ते जिस घटना के संबंध में जांच प्रारम्भ की जाय, जांच प्रारम्भ करने की तिथि को उस घटना को 04 वर्ष से अधिक समय न बीत चुका
हो ।
19-
एक घटना से संबंधित सभी अधिकारियों/ कर्मचारियों की जांच एक अधिकारी से करायी जानी
चाहिए। ऐसा जाँच अधिकारी प्रकरण में अंतर्ग्रस्त कार्मिकों में उच्चतम पद धारक के
अनुसार नियुक्त किया जायेगा।
निषेधात्मक
निर्देश (Don'ts)
1-
सामान्यतया अपचारी कार्मिक को अपना स्पष्टीकरण दिये जाने हेतु 02 माह से अधिक का
समय न दिया जाय। किन्तु अपरिहार्य परिस्थितियों में उक्त समय सीमा में
युक्ति-युक्त (Reasonable) वृद्धि की जा सकती है।
2-
जांच अधिकारी को जांच आख्या में प्रस्तावित दण्ड के विषय में कोई मन्तव्य अथवा
संस्तुति अंकित नहीं करनी चाहिए ।
3-
वेतन वृद्धि को संचयी या स्थायी प्रभाव से रोके जाने की दशा में दण्ड के प्रभावी
रहने की अवधि का अंकन नहीं किया जायेगा।
4-
चेतावनी नियम-3 में उल्लिखित शास्तियों में शामिल नहीं है,
अत: चेतावनी देते हुए विभागीय जांच (नियम-7), या
नियम- 10 के प्रकरण समाप्त किया जाना नियम संगत नहीं है।
5-
यदि किसी अनियमितता / आरोप के विषय में कार्यवाही प्रारम्भ होने के पश्चात् दण्ड
देकर अथवा बिना दण्ड एक बार मामला अंतिम रूप से समाप्त हो गया है तो ठीक उसी
अनियमितता या आरोप के आधार पर किसी सरकारी सेवक के विरूद्ध दण्डात्मक कार्यवाही
नहीं की जा सकती है।
6-
आरोप पत्र अनुशासनिक प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित और हस्ताक्षरित किया जाएगा। किन्तु
यदि नियुक्ति प्राधिकारी राज्यपाल हो तो
वहाँ आरोप पत्र संबंधित विभाग के यथा स्थिति अपर मुख्य सचिव / प्रमुख सचिव अथवा
सचिव द्वारा अनुमोदित किया जा सकेगा।
7-
सतर्कता विभाग की खुली या गोपनीय जांच, जो
प्राथमिक जांच है, के परिणाम आने पर पुनः वैभागिक स्तर पर
प्राथमिक जांच नहीं की जानी चाहिए बल्कि सीधे औपचारिक जांच, यदि
आवश्यक हो, प्रारम्भ की जानी चाहिए।
8-
आरोप पत्र में सतर्कता जांच का उल्लेख नहीं किया जाना चाहिए।
9-
यदि मामला जांच हेतु प्रशासनाधिकरण / सतर्कता अधिष्ठान / अपराध अनुसंधान विभाग को
सौप दिया गया हो तो वैभागिक स्तर पर औपचारिक जांच नहीं की जानी चाहिए और यदि
वैभागिक स्तर पर जांच चल रही हो तो रोक देनी चाहिए तथा प्रशासनाधिकरण की अन्तिम
जांच आख्या प्राप्त होने पर नियमानुसार अग्रिम कार्यवाही की जानी चाहिए।
10-
आरोपित सरकारी सेवक को दण्डादेश जारी करने के निमित्त शो-काज नोटिस दिए जाने की
आवश्यकता नहीं है।
11-
न्यायालय द्वारा दोष सिद्ध के आधार पर यदि दण्ड दिया जाना हो तो न्यायालय के
निर्णय के विरुद्ध सरकारी सेवक द्वारा अपील किये जाने की प्रतीक्षा तथा यदि अपील
की जा चुकी हो तो उसके निर्णय की प्रतीक्षा नहीं की जानी चाहिए बल्कि ट्रायल
(प्राथमिक) कोर्ट द्वारा की गई दोष सिद्ध के आधार पर समुचित दण्डादेश पारित कर देना
चाहिए ।
12-
सेवा से पदच्युत करना और सेवा से हटाने का दण्ड आरोपित सरकारी सेवक के वास्तविक
नियुक्ति अधिकारी से नीचे के स्तर के अधिकारी द्वारा नहीं दिया जा सकता |
13-
यदि दण्डादेश राज्यपाल से भिन्न किसी प्राधिकारी द्वारा पारित किये जाने हो तो लोक
सेवा आयोग का परामर्श आवश्यक नहीं है, चाहे
आरोपित सरकारी सेवक की नियुक्ति लोक सेवा आयोग के परामर्श से उनके द्वारा आयोजित
चयन के आधार पर की गई हो ।